Saturday 2 April 2016

Friday 5 February 2016








साईंबाबा
भारतीय समाज में संतऋषि- मुनियोंफकीरों ने अहम भूमिका निभाई है। इनमें से अधिकतर संतों ने लोक- आस्था के आधार पर भगवान का दर्जा पाया है। इन्हीं प्रमुख संतों में से एक शिरडी के साईं बाबा थेजो आध्यात्मिक गुरुयोगीफकीर तथा भगवान के रूप में भी प्रसिद्ध है। साईं बाबा को हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्मों के लोग पूजनीय मानते हैं। साईं बाबा ने अपने जीवन में मानवता को ही अपना धर्म माना था। साईं बाबा को लोग कई नामों से जानते हैं। इन नामों में से कुछ प्रमुख नाम निम्न हैं:साईंबाबा के 108 नाम 
1.साईंनाथ: प्रभु साई
2.लक्ष्मी नारायण: लक्ष्मी नारायण के चमत्कारी शक्ति वाले
3.कृष्णमशिवमारूतयादिरूप: भगवान कृष्णशिवराम तथा अंजनेय का स्वरूप
4.शेषशायिने: आदि शेष पर सोने वाला
5.गोदावीरतटीशीलाधीवासी: गोदावरी के तट पर रहने वाले (सिरडी)
6.भक्तह्रदालय: भक्तों के दिल में वास करने वाले
7.सर्वह्रन्निलय: सबके मन में रहने वाले
8.भूतावासा: सभी प्राणियों में रहने वाले
9.भूतभविष्यदुभवाज्रित: भूतभविष्य व वर्तमान का ज्ञान देने वाले
10.कालातीताय: समय से परे
11.काल: समय
12.कालकाल: मृत्यु के देवता का हत्यारा
13.कालदर्पदमन: मृत्यु का भय दूर करने वाले
14.मृत्युंजय: मृत्यु पर विजय प्राप्त करने वाले
15.अमत्य्र: श्रेष्ठ मानव
16.मर्त्याभयप्रद: मनुष्य को मुक्ति देने वाले
17.जिवाधारा: जीवन का समर्थन करने वाले
18.सर्वाधारा: समस्त क्रिया का समर्थन करने वाले
19.भक्तावनसमर्थ: पूजनीय
20.भक्तावनप्रतिज्ञाय: अपने भक्तों की रक्षा का वचन निभाने वाले
21.अन्नवसत्रदाय: वस्त्र व अन्न देने वाले
22.आरोग्यक्षेमदाय: स्वास्थ्य और आराम देने वाले
23.धनमाङ्गल्यप्रदाय: भलाई और स्वास्थ्य का अनुदान करने वाले
24.ऋद्धिसिद्धिदाय: बुद्धि और शक्ति देने वाले
25.पुत्रमित्रकलत्रबन्धुदाय: पुत्रमित्र आदि का सुख देने वाले
26.योगक्षेमवहाय: मानुष्य की रक्षा करने वाले
27.आपदबान्धवाय: समस्या के समय भक्तों के साथ रहने वाले
28.मार्गबन्धवे: जीवन का मार्ग- दर्शन करने वाले
29.भक्तिमुक्तिस्वर्गापवर्गदाय: धनअनन्त परमानंद और अनन्त राज्य (स्वर्ग) देने वाले
30.प्रिय: भक्तों के प्रिय
31.प्रीतिवर्द्धनाय: भगवान के प्रति भक्ति बढ़ाने वाले
32.अन्तर्यामी: पवित्र आत्मा
33.सच्चिदात्मने: ईश्वरीय सत्य
34.नित्यानन्द: हमेशा शाश्वत आनंद में डूबे रहने वाले
35.परमसुखदाय: असीम सुख
36.परमेश्वर: प्रमुख देव
37.परब्रह्म: परम ब्रह्म
38.परमात्मा: दिव्य आत्मा
39.ज्ञानस्वरूपी: बुद्धिमान व्यक्ति
40.जगतपिता: ब्रह्मांड के पिता
41.भक्तानां मातृ दातृ पितामहाय : सभी भक्तों के लिए
42.भक्ताभयप्रदाय: सभी भक्तों को शरण में लेने वाले
43.भक्तपराधीनाय: अपने भक्तों का सारंक्षण करने वाले
44.भक्तानुग्रहकातराय: अपने भक्तों को आशीर्वाद देने वाले
45.शरणागतवत्सलाय: भक्तों को शरण में लेने वाले
46.भक्तिशक्तिप्रदाय: अपने भक्तों को ताकत देने वाले
47.ज्ञानवैराग्यप्रदाय: बुद्धि और त्याग करने वाले
48.प्रेमप्रदाय: अपने सभी भक्तों पर प्रेम की नि: स्वार्थ वर्षा
49.संशयह्रदय दौर्बल्यपापकर्म वासनाक्षयकराय:पाप और प्रवृत्ति की कमजोरियों को दूर करने वाले
50.ह्रदयग्रन्थिभेदकाय: दिल के अनुलग्नक नष्ट कर देने वाले
51.कर्मध्वंसिने: पापों व बुराई नष्ट करने वाले
52.शुद्ध-सत्वस्थिताय: शुद्धसच्चाई और अच्छाई
53.गुनातीतगुणात्मने: सभी अच्छे गुणों को पास रखने वाले
54.अनन्तकल्याण गुणाय: असीम अच्छे गुण वाले
55.अमितपराक्रमाय: अथाह शौर्य के स्वामी
56.जयिने: अजय
57.दुर्धर्षाक्षोभ्याय: अपने भक्तों के सभी आपदाओं को नष्ट करने वाले
58.अपराजिताय: सदैव वियजी रहने वाले
59.त्रिलोकेषु अविघातगतये: स्वतंत्रा देने वाले
60.अशक्य-रहीताय: सब कुछ पूरी तरह निष्पादित करने वाले
61.सर्वशक्तिमूर्तये: सभी शक्तियों की मूर्ति
62.सुरूपसुन्दराय: सुंदर
63.सुलोचनाय: आकर्षक सुंदर और प्रभावशाली आंखें
64.बहुरूप विश्वमूर्तये: अनेक रूप वाले
65.अरूपाव्यक्ताय: अमूर्त
66.अचिन्त्याय: सोचा से परे
67.सूक्ष्माय: छोटा रूप
68.सर्वान्तर्यामिणे: सम्पूर्ण विश्व
69.मनोवागतीताय: शब्द व दुनिया से परे
70.प्रेममूर्तये: प्यार का अवतार
71.सुलभदुर्लभाय: जिसको पाना आसान भी और कठिन
72.असहायसहायाय: भक्तों की आस्था पर निर्भर रहने वाले
73.अनाथनाथदीनबंधवे: अनाथों के दयालु प्रभु
74.सर्वभारभृते: अपने भक्तों की रक्षा का बोझ उठाने वाले
75.अकर्मानेककर्मसुकर्मिणे: महसूस न होने वाले
76.पुण्यश्रवणकीर्तनाय: सुनने योग्य
77.तीर्थाय: पवित्र नदियों का स्वरूप
78.वासुदेव: कृष्णा का स्वरूप
79.सतां गतये: सबको शरण में रखने वाले
80.सत्परायण: अच्छे गुण वाले
81.लोकनाथाय: विश्व के स्वामी
82.पावनानघाय: पवित्र रूप
83.अमृतांशवे: दिव्य अमृत
84.भास्करप्रभाय: सूर्य की तरह चमकने वाले
85.ब्रह्मचर्यतपश्चर्यादिसुव्रताय: ब्रह्मचारी की तपस्या के अनुसार
86.सत्यधर्मपरायणाय: सत्य और धर्म का प्रतीक
87.सिद्धेश्वराय: समस्त आठ सिद्धि के स्वामी
88.सिद्धसंकल्पाय: पूर्ण रूप से इच्छा का सम्मान करने वाले
89.योगेश्वराय: सभी योगियों या संन्यासियों के मस्तक के समान
90.भगवते: ब्रह्मांड की प्रमुख प्रभु
91.भक्तवत्सलाय: अपने भक्तों के पराधीन
92.सत्पुरुषाय: अनन्तअव्यक्त व उत्तम पुरुष
93.पुरुषोत्तमाय: उच्चतम
94.सत्यतत्वबोधकाय: सत्य और वास्तविकता की सही सिद्धांतों का उपदेश देने वाले
95.कामादिशड्वैरिध्वंसिने: इच्छाक्रोधलोभघृणाशानऔर वासना का नाश करने वाले
96.समसर्वमतसम्मताय: सहिष्णु और सभी के प्रति समान
97.दक्षिणामूर्तये: भगवान शिव
98.वेंकटेशरमणाय: भगवान विष्णु
99.अद्भूतानन्तचर्याय: अनंतअद्भुत कर्म (चमत्कार) करने वाले
100.प्रपन्नार्तिहराय: समस्याओं का नाश करने वाले
101.संसारसर्वदु: ख़क्षयकराय: सभी दुखों का नाश करने वाले
102.सर्ववित्सर्वतोमुखाय:
103.सर्वान्तर्बहि: स्थिताय: सभी मनुष्य में मौजूद रहने वाले
104.सर्वमंगलकराय: भक्तों के कल्याण के शुभ करने वाले
105.सर्वाभीष्टप्रदाय: भक्तों की इच्छाओं की पूर्ति करने वाले
106.समरससन्मार्गस्थापनाय: एकता का संदेश देने वाले
107.समर्थसद्गुरुसाईनाथाय: श्री सद्गुरु साईंनाथ


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Friday 29 January 2016








पत्नी पूरण

पुराने समय से ही दुनिया का मोह छोड़कर,सच की तलाश में भटकनेवाले भगोड़ों को सही रास्ते पर लाने के लिएशादी कराने का रिवाज़ हमारे समाज में रहा है। कई बिगड़ैल कुँवारों को इसी पद्धति से आज भी रास्ते पर लाया जाता है। हम सबने कई बार देखा-सुना है कि तथाकथित सत्य की तलाश में भटकने को तत्पर आत्मा,शादी के बाद पत्नी को प्रसन्न करने के लिए लगातार भटकती रहती है। कहते भी हैं कि "शादी वह संस्था है जिसमें मर्द अपनी 'बैचलर डिग्रीखो देता है और स्त्री 'मास्टर डिग्रीहासिल कर लेती है।"
प्रायः शादी के पहले की ज़िंदगी पत्नी को पाने के लिए होती है और शादी के बाद की ज़िंदगी पत्नी को ख़ुश रखने के लिए। तक़रीबन हर पति के लिए पत्नी को ख़ुश रखना एक अहम और ज्वलंत समस्या होती है और यह समस्या चूँकि सर्वव्यापी हैअतः इसे हम चाहें तो राष्ट्रीय (या अंतर्राष्ट्रीय) समस्या भी कह सकते हैं। लगभग प्रत्येक पति दिन-रात इसी समस्या के समाधान में लगा रहता हैपर कामयाबी बिरलों के भाग्य में ही होती है। सच तो यह है कि आदमी की पूरी ज़िंदगी पत्नी को ही समर्पित रहती है और पत्नी है कि ख़ुश होने का नाम ही नहीं लेती। अगर ख़ुश हो जाएगी तो उसका बीवीपन ख़त्म हो जाएगाफिर उसके आगे-पीछे कौन घूमेगाकिसी ने ठीक ही तो कहा है कि "शादी और प्याज में कोई ख़ास अन्तर नहीं - आनन्द और आँसू साथ-साथ नसीब होते हैं।"
पत्नी को ख़ुश रखना इस सभ्यता की संभवतः सबसे प्राचीन समस्या है। सभी कालखण्डों में पति अपनी पत्नी को ख़ुश रखने के आधुनिकतम तरीकों का इस्तेमाल करता रहा है और दूसरी ओर पत्नी भी नाराज़ होने की नई-नई तरक़ीबों का ईजाद करती रहती है। एक बार एक कामयाब और संतुष्ट-से दिखाई देनेवाले पति से मैंने पूछा- 'क्यों भाई पत्नी को ख़ुश रखने का उपाय क्या है?' वह नाराज़ होकर बोला- 'यह प्रश्न ही गलत है। यह सवाल यूँ होना चाहिए था कि पत्नी को भी कोई ख़ुश रख सकता है क्या?' उन्होंने तो यहाँ तक कहा कि "शादी और युद्ध में सिर्फ़ एक अन्तर है कि शादी के बाद आप दुश्मन के बगल में सो सकते हैं।"
जिस पत्नी को सारी सुख-सुविधाएँ उपलब्ध होंवह इस बात को लेकर नाराज़ रहती है कि उसका पति उसे समय ही नहीं देता। अब बेचारा पति करे तो क्या करेसुख-सुविधाएँ जुटाए या पत्नी को समय देइसके बरअक्स कई पत्नियों को यह शिकायत रहती है कि मेरे पति आफिस के बाद हमेशा घर में ही डटे रहते हैं। इसी प्रकार के आदर्श-पतिनुमा एक इन्सान(?) से जब मैंने पूछा कि 'पत्नी को ख़ुश रखने का क्या उपाय है?' तो उसने तपाक से उत्तर दिया-'तलाक।मुझे लगा कि कहीं यह आदमी मेरी ही बात तो नहीं कह रहा हैमैं सोचने लगा, " 'विवाहऔर 'विवादमें केवल एक अक्षर का अन्तर है शायद इसलिए दोनों में इतना भावनात्मक साहचर्य और अपनापन है।"
पतिव्रता नारियों का युग अब प्रायः समाप्ति की ओर है और पत्नीव्रत पुरुषों की संख्या,प्रभुत्व और वर्चस्व लगातार बढत की ओर है। यदि इसका सर्वेक्षण कराया जाय तो प्रायः हर दसरा पति आपको पत्नीव्रत मिलेगा। मैंने सोचा क्यों न किसी अनुभवी पत्नीव्रत पति से मुलाकात करके पत्नी को ख़ुश रखने का सूत्र सीखा जाए। सौभाग्य से इस प्रकार के एक महामानव से मुलाकात हो ही गईजो इस क्षेत्र में पर्याप्त तजुर्बेकार थे। मैंने अपनी जिज्ञासा जाहिर की तो उन्होंने जो भी बतायाउसे अक्षरशः नीचे लिखने जा रहा हूँताकि हर उस पति का कल्याण हो सकेजो पत्नी-प्रताड़ना से परेशान हैं -

१ - ब्रह्ममुहुर्त में उठकर पूरे मनोयोग से चाय बनाकर पत्नी के लिए 'बेड टीका प्रबंध करें। इससे आपकी पत्नी का 'मूड नार्मलरहेगा और बात-बात पर पूरे दिन आपको उनकी झिड़कियों से निजात मिलेगी। वैसे भीकिसी भी पत्नी के लिए पति से अच्छा और विश्वासपात्र नौकर मिलना मुश्किल हैइसलिए इसे बोझस्वरूप न लेंबल्कि सहजता से युगधर्म की तरह स्वीकार करें। कहा भी गया है कि "सर्कस की तरह विवाह में भी तीन रिंग होते हैं - एंगेजमेंट रिंगवेडिंग रिंग और सफरिंग।"

२ - अगर आपका वास्ता किसी तेज़-तर्रार किस्म की पत्नी से है तो उनके तेज में अपना तेज (अगर अबतक बचा हो तो) सहर्ष मिलाकर स्वयं निस्तेज हो जाएँ। क्योंकि कोई भी पत्नी तेज-तर्रार पति की वनिस्पत ढुलमुल पति को ही ज्यादा पसन्द करती है। इसका यह फायदा होगा कि आप पत्नी से गैरजरूरी टकराव से बच जाएँगेअब तो जो भी कहना होगापत्नी कहेगी। आपको तो बस आत्मसमर्पण की मुद्रा अपनानी है।

३- आपकी पत्नी कितनी ही बदसूरत क्यों न होआप प्रयास करकेमीठी-मीठी बातों से यह यकीन दिलाएँ कि विश्व-सुन्दरी उनसे उन्नीस पड़ती है। पत्नी द्वारा बनाया गया भोजन (हालाँकि यह सौभाग्य कम ही पतियों को प्राप्त है) चाहे कितना ही बेस्वाद क्यों न होउसे पाकशास्त्र की खास उपलब्धि बताते हुए पानी पी-पीकर निवाले को गले के नीचे उतारें। ध्यान रहे,ऐसा करते समय चेहरे पर शिकायत के भाव उभारना वर्जित हैक्योंकि "विवाह वह प्रणाली हैजो अकेलापन महसूस किए बिना अकेले जीने की सामर्थ्य प्रदान करती है।"

४ - पत्नी के मायकेवाले यदि रावण की तरह भी दिखाई दे तो भी अपने वाकचातुर्य और प्रत्यक्ष क्रियाकलाप से उन्हें 'रामावतारसिद्ध करने की कोशिश में सतत सचेष्ट रहना चाहिए।

५ - आप जो कुछ कमाएँउसे चुपचाप 'नेकी कर दरिया में डालकी नीति के अनुसार बिल्कुल सहज समर्पित भाव से अपनी पत्नी के करकमलों में अर्पित कर दें और प्रतिदिन आफिस जाते समय बच्चों की तरह गिड़गिड़ाकर दो-चार रूपयों की माँग करें। पत्नी समझेगी कि मेरा पति कितना बकलोल है कि कमाता खुद है और रूपये-दो रूपयों के लिए रोज मेरी खुशामद करता रहता है। एक हालिया सर्वे के अनुसार लगभग पचहत्तर प्रतिशत पति इसी श्रेणी में आते हैं। मैं अपील करता हूँ कि शेष पच्चीस प्रतिशत भी इस विधि को अपनाकर राष्ट्र की मुख्यधारा में सम्मिलित हो जाएँ और सुरक्षित जीवन-यापन करें।
अंत में उस अनुभवी महामानव ने अपने इस प्रवचन के सार-संक्षेप के रूप में यह बताया कि उक्त विधियों को अपनाकर आप भले दुखी हो जाएँलेकिन आपकी पत्नी प्रसन्न रहेगी और उनकी मेहरबानी के फूल आप पर बरसते रहेंगे। किसी ने बिलकुल ठीक कहा है कि "प्यार अंधा होता है और शादी आँखें खोल देती है।" मेरी भी आँखें खुल गई। कलम घिसने का रोग जबसे लगासाहित्यिक मित्रों की आवाजाही घर पर बढ़ गई। चाय-पानी के चक्कर में जब पत्नी मुझे पूतना की तरह देखती तो मेरी रूह काँप जाती थी। मैंने इससे निजात पाने का रास्ता ढूँढ ही लिया।
आपने फूल कई रंगों के देखे होंगेलेकिन साँवले या काले रंग के फूल प्रायः नहीं दिखते। मैंने अपने नाम 'श्यामलके आगे पत्नी का नाम 'सुमनजोड़ लिया। हमारे साहित्यिक मित्र मुझे 'सुमनजी-सुमनजीकहकर बुलाते हुए घर आते। धीरे-धीरे नम्रतापूर्वक मैंने अपनी पत्नी को विश्वास दिलाने में आश्चर्यजनक रूप से सफलता पाई कि मेरे उक्त क्रियाकलाप से आखिर उनका ही नाम तो यशस्वी होता है। अब मेरे घर में ऐसे मित्रों भले ही स्वागत-सत्कार कम होता होपर मैं निश्चिन्त हूँ कि अब उनका अपमान नहीं होगा। किसी ने ठीक ही कहा है कि "विवाह वह साहसिक-कार्य है जो कोई बुजदिल पुरुष ही कर सकता है।"